धुँ - धुँ जलती भारत माता
धुँ - धुँ जलती भारत माता
ये सोचनीय है कि, हम अपनी आने वाली पीढियों को विरासत में क्या सौंप कर जायेंगे?
प्रकृति के विनाशकारी प्रकोप में होता सर्वस्व स्वाहा
असंवेदनाओं और अनैतिकता के दलदल का मैला प्रवाह,
सड़कों पर घटित वहशीपन के दानवों की दरिंदगी,
आत्मा पर लगी अचेतना की दुर्गन्ध भरी फँफूदी,
देश की एकता की जड़ों में लगा भेदभाव का दीमक,
रक्त अवशोषित मानव की सूरत बनी अजीब भीशक,
आतंक की आग में राख होता निर्दोष मानवता का तन,
धार्मिक भेदभाव के नाग का जहरीला फहराता काला फन
हिंसक दंगों की सूली पर चढी भारत माता की गर्दन,
लहू बहाती ममता की आँखें विलाप करती माँ की गर्जन,
रक्तरंजित सुहागिन की चुनरी बिलखता मांग का सिंदूर
दूर दूर तक पसरी बच्चों की असहनीय दर्द भरी गूँज,
हिंसा के भूखे भेडिये हो अधीर एक दूजे पर झपटैं,
धुँ - धुँ कर जलती भारत माता ऊँची ऊँची लपटैं
ऊँची ऊँची लपटैं।