धुआं बनाकर हवा में उड़ाता चल
धुआं बनाकर हवा में उड़ाता चल
अनजान-सी इक वीरानी छायी है
आज ज़िन्दगी की खुशनुमा गलियों में
कल मँडराते थे खुशियों के भँवरे
आज मायूसी पसरी है यहाँ कलियों में
कुछ नहीं, भटका हुआ ये पल है
धुआं बनाकर बेफिक्री से हवा में उड़ाता चल
अजीब सन्नाटा पसरा है रिश्तों में
ख़ामोशी के साये में बढ़ रही हैं अब दूरियाँ
कितने लाचार, कितने बेबस हुए हम
हर मोड़ पर भोंह ताने खड़ी हैं मजबूरियाँ
कुछ नहीं, बस थोड़ा-सा धुंधलापन है
धुआं बनाकर बेफिक्री से हवा में उड़ाता चल
अपरिचित मेहमान आया है कहाँ से
अकारण क्यों फ़िक्र इसकी तू करता है
धीरज धार, धुंधले बादलों को छटने दे
हवा के बदले हुए रुख से क्यों तू डरता है
परदेशी दुश्मन के गुप्त मंसूबों को
धुआं बनाकर बेफिक्री से हवा में उड़ाता चल
वक्त का ये पहिया कल फिर घूमेगा
मगर तेरी उम्मीद का दिया यूँ ही जलता रहे
अपनी संभावनाओं को मरने मत देना
हर मुरझाया ख़्वाब तेरा दिल में पलता रहे
चेहरे पर उभरी झुंझलाहट की लकीरों को
धुआं बनाकर बेफिक्री से हवा में उड़ाता चल।