आवाज़
आवाज़
मैं हल्की सी आवाज हूं, कोई रूप है ना ढंग है,
बस हल्का सा गुमान है, भीड़ में जो डर गया,
बस वह एक हल्की सी आवाज है।
दर्द से भरी है वह, हल्की सी आवाज है,
कान में भी ना पड़े, बस इतना सा एहसास है,
नजरों का जो फेर है, बस उसमें ही छुपी हुई,
आंसुओं की आवाज है, तू कहीं से बस में आ गई।
लोगों की वह बुरी नजर, जिसने छुआ है हर बदन,
वह एहसास ही नहीं जो बयां करूं,
वह आवाज कहां से लाऊं मैं।
हल्की सी आवाज को, सीने में छुपा के मैं चली,
धूप छांव तो आए बहुत, पर उस आवाज से दूर कहीं मैं भाग चली।
भाग के जाऊं किधर, सर्च फिर से आ खड़ा,
दामन छुपाए फिर उठी, फिर से भाग चल पड़ी।
फिर सोचा बहुत तलक, बस हल्की सी आवाज है,
तभी तो दबी हुई है अंदर।
चलो थोड़ा ज़ोर मैं लगाऊं , थोड़ा ज़ोर तुम लगाओ।
हल्की सी आवाज को, सेंक पर चलो हम चढ़ाएं,
शोर अब वह बन जाए, गरज के आओ तो मगर,
फिर उठाओ वह आवाज, डर से जो अब डरे नहीं।
अब खड़े हैं उस तलक, देख आग को डर रहे,
अब वह हल्की सी आवाज गरज रही है इस कदर,
देख सब कुछ चल रहा, सीने में जो दफन रहा,
हल्की सी आवाज़ अब सुकून के पल वो गिन रहा।
