तेजाब की बूंदे
तेजाब की बूंदे
काश वो तेज़ाब मेरे दामन पर ना गिरता,
काश वो पानी होता तो भी तो शायद चलता,
काश वो ऐसे किसी पे भी ना गिरता,
काश वो तेज़ाब दुकान में भी ना मिलता।
काश वो तेज़ाब का दर्द उन लोगों को भी होता,
काश वो तेज़ाब किसी के दिमाग में ही ना होता,
काश वो तेज़ाब की छीटों की सज़ा हमें इस कदर ना मिलती,
काश तेज़ाब की कुछ बूंदें हमारी तकदीर ना तय करती।
काश इतनी कड़वाहट किसी के दिलों में ही ना होती,
काश बारिश की बूँदों की तरह उन्हें भी धो दिया जाता,
काश उसे फेंकने वालों को भी इंसान कहा जा सकता,
काश तेज़ाब बेचने पर भी रोक लगाई जा सकती।
काश हम लोग किसी के तरक्की पर इस तरह ना जलते ,
काश हम खुद की नाकामयाबी पर इस तरह ना काम करते,
काश हम गुस्से में भी इंसान बने रह सकते,
काश हम खुद को हमेशा इंसान कहलाने के काबिल बने रह सकते।
काश कुछ करने से पहले थोड़ा सा सोचते,
काश हम भी बिना डरें इस ज़माने में जी पाते,
काश हमें भी आज़ादी का सूरज दिखता,
काश तेज़ाब से हमें मुक्ति है मिलती।
