धरती धोरा री
धरती धोरा री
धूप लागे सोहणी और चाय की दिल्लगी,
हवा ठंडी जब चले, तो उठे कंपकपी ।
मिट्टी की महक और झाड़ियाँ लहराई,
मारवाड़ की धरती में सुहानी ठंडी है छाई ।
पानी चाहिए उबलता, अगर हमे है नहाना,
रोटी मिल जाए गरम, तीन चार एक्स्ट्रा ही खा जाना ।
मेथी की भाजी औऱ बाजरे का सोगरा,
खाये छोकरी छोकरा, ने खाये जाए डोकरा ।
शाल, स्वेटर लगे प्यारे और रजाई में घुस जाना,
नींद आये गहरी, सुबह जल्दी ना उठाना ।
ना ट्रैफ़िक का झंझट, ना आँफिस जाने की जल्दी,
जन्म भूमि अपनी, ये है स्वर्ग जैसी धरती ।