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Sugan Godha

Tragedy

4.8  

Sugan Godha

Tragedy

दहलीज

दहलीज

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हुई न सदियों से जो पार ,

न जाने कैसी ये दहलीज !

कभी संस्कारों ने रोका तो ,

कभी मर्यादा बनी दहलीज !!

कई रीति रिवाज बने हैं ,

कई रूढ़ियां बांधे पाँव !

सपने आँखों में कैद कर ,

चलना है समाज की चाल !!

पार डोली से दहलीज होगी ,

पायेगी कोई नया संसार !

बेटी से बहु का सफर कर ,

अर्थी में फिर होगी दहलीज पार !!

युगों से बस परंपरा ये चली है, 

लक्ष्मण रेखा न हो कभी पार!

हौसले हो चाहे उड़ान भरने के ,

पर न होगी कभी दहलीज पार !!


   



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