बचपन के वो पल
बचपन के वो पल
उस बंजारे गलियारे में
जब न कोई फिक्र थी
जब शाम होने का इंतजार
छुट्टी का फरमान था
और पढ़ाई से निकलकर
दोस्तो से मिलने का अफसाना था
जब हर काम में खुशी मिलती थी
और हर समय मस्ती का बहाना था
बारिश के पानी में।
जब कागज़ की कश्ती चलाना था
वह बचपन जो बीता
वह कितना सुहाना था
जब बच्चा था
तो बड़ो की तरह सोचना
एक सुहाना ख्वाब था
वही ख्वाब अब एक श्राप हैं
बातों का विश्लेषण
कब बनी मेरी आदतें बनी
इसका मुझे न कभी चला पता
ढूंढता हू आज भी उस रूप को
जो आज है लापता
कहा है वो जिसने दिए
मुझे ये पल
और ये आदतए
संसार की इस दुखद सच्चाई
से जिसने मेरे लिए उस रेखा को बनाया
जिसने एक खूबसूरत
दुनिया का मुझे सपना दिखाया
आज कहां है वो
और क्यों मुझे उन्ही
ख्वाबों में जीना
आज की कड़वी सच्चाईयो
ने छल्ली कर दिया मेरा सीना।