अंतर मन के भाव
अंतर मन के भाव
मुझे महसूस हुआ
कि ये मेरे मन का
एक नकारात्मक भाव है।
मैंने कक्षा आठ में देखा
जिंदगी का एक मुश्किल पड़ाव है
लेकिन दिल ने कहा की ये
सच्चाई का भाव है।
यहाँ आज का अर्जुन
दुर्योधन बन जाता हैं।
जहाँ वीर कर्ण
भी महाभारत की तरह
कपटी दुर्योधन के छल
में फंस जाता है।
यहां पाण्डव भी कौरवों
से हार जाते हैं।
यहाँ श्री कृष्णा नही आते हैं।
जहाँ शिक्षा का उड़ाया
जाता मज़ाक हो
जहाँ अनुशाशन केवल
एक किताबी बात हो
ऐसे ही कुछ भाव
मेरे मन में
आते हैं
जो मेरी कविता की
पंक्तिया बन जाते हैं।
जो जीवन की पूर्ण
सच्चाई को बयां कर जाते हैं।
