श्री कृष्णा कलयुग संवाद
श्री कृष्णा कलयुग संवाद
उठो पार्थ इस स्वप्न से
आलस का संघार करो
तोड़ो इन भ्रम की बेड़ियों को
स्वयं पर यह उपकार करो।
त्याग करो इस भय का
इस चुनौती को तुम स्वीकार करो
अनुनय विन्नय नही सुनती
है यह कलयुग की माया
जिसने त्यागी यह चुनौती
वह आगे न बढ़ पाया।
उतार चढ़ाव
का समाहार है
यह जीवन मानव का
सरल हो
अगर मिल जाता सबकुछ
हो न जाता वो दानव सा।
जीवन कर्मयुद्ध है
इस परम सत्य को स्वीकार करो
कई अर्जुन
कई एकलभ्ययों
जन्म लिए
और मिल गए
धरा की माटी को
चंद देखते रहे
कर्ण की भांति वो
जीवन ये युद्ध हैं तेरा
अब तू शास्त्रों को धारण कर
कोई न आएगा
सहायता को तेरी
इस सत्य को अब तू
स्वीकार कर
छोड़ इस आलस हो
तू अपनी बाधाओं से लड़।