कितनी गरीबी है हमारे आस - पास ,
क्या हमने कभी महसूस किया है ?
हजारों दिहाड़ी मजदूरों के घरों में झाँक ,
उनके जलते हुए चुल्हे को कभी छुआ है ?
भूख और प्यास से परेशान उनकी जिंदगी,
हर कदम पर पैसे से लाचार उनकी ज़िन्दगी ,
जी तोड़ मेहनत के बाद भी वो कुछ नहीं पाते ,
जो थोड़ा बच गया उससे अपना कर्ज चुकाते |
दूसरी ओर महंगी गाड़ियों में घूमते हैं बाबू ,
गरीबी देखकर भी कैसे मुँह मोड़ते हैं बाबू ,
क्यूँ नहीं उनका हृदय कभी पसीजता ?
जब गरीब के खाली चुल्हे से आँगन भीगता |
गरीबी अभिशाप नहीं ये भेदभाव है इंसानो का ,
जहाँ पैसे वाला दंभ से कुचलता हृदय लाचारों का ,
गर थोड़ा-थोड़ा सब बाँट ले तो ना हो कोई गरीब ,
तब सब दिलों के हो जायें बहुत - बहुत करीब |
गरीबी के दर्द को हम सबको समझना होगा,
नई आशा के साथ इस लड़ाई से लड़ना होगा ,
नित नए प्रयासों से हम गरीबी को दूर भगायेंगे ,
थोड़ा सब अपने हिस्से का गरीब को देते जायेंगे ||