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मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

Tragedy

4  

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

Tragedy

पछतावा

पछतावा

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पल पल बीत रहा 

मेरा क्षण-क्षण बीत रहा 

मेरा जीवन तिल-तिल घट रहा

मैं नित-नित मृत्यु के नजदीक जा रहा...


मैंने अपने देखे /

पराये देखे /

मरते देखे /

जलते देखे ।


अपना सर्वस्व लुटाकर 

अब मैं पश्चाताप में जलता हूं 

सोचा था-

कुछ बड़ा करूंगा 

जीवन सफल बनाऊंगा

ज्ञानराशि संचित कर खूब लुटाऊंगा 

कवि- लेखक बन मां भारती के गुण गाऊंगा

राष्ट्र के उत्थान में कुछ योगदान मैं भी दे जाऊंगा 


पर मैं,

कुछ कर न सका, कुछ बन न सका 

अब मेरा हृदय रोता है 

मैं कहता हूं सबसे 

मैं जो कर न सका

अब पछताता हूं -

तुम जो करना चाहो 

ठीक समय पर कर लेना 

अपना जीवन सफल बना लेना ।



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