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मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

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मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

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चिट्ठियों वाले दिन

चिट्ठियों वाले दिन

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अब कोई नहीं लिखता चिट्ठी 

चिट्ठी नहीं लिखता तो,

नहीं पूछता मां की बीमारी के बारे में,

फसल की खराबी के बारे में,

बापू के नित बढ़ते कर्ज के बारे में, 

दादा के लाईइलाज मर्ज के बारे में...


होली-दिवाली, 

तीज त्यौहारों के शुभकामना संदेश 

जो वर्षों सुरक्षित रहते थे संदूक-अलमारियों में


नवयौवना का प्रेम संदेश जो हृदय में छप जाता था 

अब वो संदेश चंद मिनटों में 

ईमेल- व्हाट्सएप से डिलीट हो जाता है ।

चिट्ठियों वाला एहसास

कहां है आभासी दुनिया में...

कलम और स्क्रीन के बीच 

आ चुका जमीन आसमान का अंतर 

कागज -कलम दम तोड़ चुके 

स्क्रीन हर मनुज के चेहरे से चिपक चुकी है 

वह दिन-प्रतिदन चूस रही है मनुज का सुखचैन

और आपसी रिश्तों को तिल-तिल मार रही है 

काश ! लौट आयें वो चिट्ठियों वाले दिन...




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