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मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

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मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

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दो जून की रोटी

दो जून की रोटी

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दो जून की रोटी 

यों ही नहीं मिलती 

कोई कड़ी धूप में चलाए फावड़ा,

चलाएं कुदाली 

कोई करता साफ गंदी नाली ।


दो जून की रोटी 

यों ही नहीं मिलती 

कोई तेज धूप में खींचता रिक्शा

कोई रात-रात भर जागे

मेहनत करे कल कारखानों में....


दो जून की रोटी 

किसी को मिलती बड़ी मुश्किल से तो 

कोई काजू, बादाम, पिस्ता उड़ाए

जब मेहनत और किस्मत रंग दिखाये 

रे हरिया! जीवन बदल जाये ।



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