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मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

Inspirational

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मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

Inspirational

पुरुष

पुरुष

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कष्टों को जो हॅंसते-हॅंसते सहजाता 

ऑंधी-तूफान, बवंडर में भी मुस्काता 

परिवार हित हर मुसीबत से लड़ जाता 

वो पुरुष कहलाता ।।


बचपन से बुढ़ापे तक जिम्मेदारी का बोझ 

कभी बेटा, कभी भाई, कभी बाप, कभी दादा

बनकर निज कर्त्तव्य पथ पर चलता जाता 

वो पुरुष कहलाता ।।


स्वयं के अरमानों का गला घोंट

अपनों के सब सपने पूरा करता 

जमाने भर का दर्द पीकर शांत रहता 

वो पुरुष कहलाता ।।


हरदम जलता-पिघलता पर मुंह न खोलता 

पत्थर सा कठोर चेहरा, हृदय फूल सा कोमल

दिखता बड़ा गुस्सेल परंतु छिप-छिप रोता

वो पुरुष कहलाता ।।


परिवार की हर जरूरत पूरी करता 

स्त्री का सम्मान, बच्चों का भगवान होता

विष पीकर वह अमृत बरसाता 

वो पुरुष कहलाता ।।


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