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Sugan Godha

Classics

4.9  

Sugan Godha

Classics

"जी चाहता है "

"जी चाहता है "

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धरती से अम्बर को मैं चूम लूँ,

जी चाहता है जी भर मैं झूम लूँ !

लहरों सी लहरों के संग मैं लहरूँ,

जी चाहता है तूफ़ानों से आज टकराऊँ।


किनारों से तो किश्ती सब पर करते हैं,

 बीच भंवर अपनी किश्ती को मोड़ लूँ !

सागर से मोती हर कोई चुन लेता हैं,

जी चाहता है मैं पलकों से मोती चुन लूँ।


मजबूत कोई माला रिश्तों की हो तो,

जी चाहता है उसे जीवन से जोड़ लूँ !

बनकर भाप मैं बादल ही बन जाऊँ,

जी चाहता है ओस बन धरती में खो जाऊँ।


किसी ऊँचे पर्वत की तलहटी पर मैं,

बनकर काली मैं फिर से खिल जाऊँ !

सुहानी सी रुत में मंद-मंद महक जाऊँ, 

जी चाहता है जी भर मैं फिर से जी लूँ !


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