बाल मजदूर
बाल मजदूर
मजबूर हो बना मजदूर,
उम्र अभी पढ़ने की है।
घर में ना कोई पुरुष बड़ा,
यूँ ही नहीं बाल मजदूर बना।
बहने चार छोटी मुझसे,
माँ मेरी है बीमार बहुत।
पिता स्वर्ग को चल दिये,
घर में बचा अब अनाज कहाँ।
बेची किताबें तब रोटी लाया,
पर छोटी को नहीं दूध मिला।
कोई कहाँ मदद को आया,
दो वक़्त का कहाँ भोजन लाया।
पांच जिंदगियां पालने के लिए,
मजबूर मैं बाल मजदूर बना।
नन्हे-नन्हे हाथों ने आज,
बड़े सेठों की गाड़ीयाँ धोई।
फसा उंगलियों में चाय के गिलास,
अफसरों के दफ्तर गया।
ली चाय की चुस्की सबने,
उम्र मेरी किसी ने देखी कहाँ।
दोषी वो मालिक ही बना,
जिसने मुझको काम दिया।
पर मेरे हालातों का दोषी कौन ?
कोई बता दे आज मुझको भी,
क्यूँ मजबूर हो बाल मजदूर बना।।