दलित की बेटी
दलित की बेटी


क्या दोष मेरा था बस यही ?
मैं बेटी दलित की थी !
माँ भाई संग मैं खेत में,
घास इकट्ठा कर रहीं थी !
खींच दुपट्टा गले से मेरे,
घसीट ले गए दूर मुझे !
संग बर्बरता इतनी की,
बायां भी मैं न कर सकूँ !
दरिंदों ने ऐसी दरिंदगी की,
भक्षण पहले मिलकर किया !
नोच-नोच मुझे इतना खाया,
आत्मा को मेरी रौंद दिया !
हड्डियां तक न छोड़ी मेरी,
भूखे इतने वो भेड़िये थे !
दर्द अपना सुना न सकूँ,
जुबां को मेरी काट दिया !
न लड़ सकीं पचासों से,
जिंदगी से भी हार गयी !
इंसाफ मिलेगा क्या अब मुझे,
आत्मा मेरी पूछ रही !
क्या दोष मेरा था बस यही ?
दलित की मैं बेटी थी !!