चाँद से बातें हजार होती हैं..
चाँद से बातें हजार होती हैं..
जब शाम को देखता हूँ आसमान, चाँद से बातें होती हजार,
देखता तारों की टिमटिमाहट, निहारता हूँ चाँदनी का प्यार।
चाँद चाँदनी की सुनता गुफ्तगू, उनके प्रीत प्रेम की कहानी,
कैसे पनपा उनका यह प्यार, सुनता उन दोनों की जुबानी।
शाम के उस घनघोर अँधेरे में, सरसराहट करती हुई झाड़ियाँ,
बादलों के उस पार, चाँद लेता रहता चाँदनी की गलबहियाँ।
तब कभी कचोटती मन को, अकेलेपन की उदास कसक,
याद आती किसी अपने की, मन उठता वेदना से भभक।
देखता हूँ जब भी चाँद का दाग, तड़प उठता है ये अंतर्मन,
कैसे कर देतें है लोग, किसी की अस्मिता का क्रूर हनन?
चाँद का दाग उसकी सुंदरता, पर बाकी दागों का क्या करूँ?
जिन्दगी देती जो दाग, उन दागों को कैसे मैं साफ करूँ?
उठता बार बार यही एक सवाल, मनुष्य क्यूँ हो जाता उग्र?
बुरे कर्म करने को क्यूँ सदा, इंसान हो जाता इतना व्यग्र?
क्या बिगाड़ा था उस ने किसी का, जो चेहरा बिगाड़ दिया?
की किसीने सुंदरता ख़राब, क्यूँ उस पर तेजाब गिरा दिया?
आए दिन तो सुनता हूँ, होती रहती ऐसी घटनाएँ वीभत्स,
क्यूँ करते हैं लोग ऐसा, क्या होता होगा उनका निष्कर्ष?
चाँद तो मर्द है, उसे प्रेम करना क्यूँ चाँदनी की मजबूरी?
अगर चाँदनी में होता दाग, चाँद क्या न रखता फिर दूरी?
चाँद को लगा दाग, फिर भी चाँदनी का प्रेम सदा अंतहीन,
अगर चाँदनी को लगता दाग, तो शायद कहलाती चरित्रहीन।
इसी बात की कसक है, क्यूँ होता मर्द औरत में भेदभाव?
गलती करे कोई नामर्द, फिर भी औरत को देतें सब घाव।
चाँद से हजारों बातें करता हूँ, पर कसक यह रह ही जाती है,
नारी उत्पीड़न की घटनाएँ, चोट मन को बहुत पहुँचाती है।
नारी सशक्तिकरण के युग में, यह भेद करता मन में शोर,
शायद इस रात के बाद, आ जाए फिर एक नई सुहानी भोर।
आओ आज लें यह प्रण, करेंगे नारी शक्ति को सदा नमन,
न होने दें कभी जग में, किसी नारी की अस्मिता का हनन।
न लगने देंगे दाग़ किसी दामन पर, करेंगे सदा सम्मान,
चाँदनी को सशक्त बनाएंगे, देंगे चाँदनी को उसकी पहचान।
