अनसुनी आवाज
अनसुनी आवाज


भर आती हैं गले तक,
कोई रूखी सी आवाज ।
सिमट कर रह जाती हैं ,
ले सूखे अधरों की ओठ ।
ढूँढ कर राह नैनो से वो ,
धीरे-धीरे से बह जाती है ।
वो अनकही आवाज फिर ,
तन्हाई में घुल जाती हैं ।
सारे अरमानो की ये ,
कोई कहानी लिख जाती हैं ।
बहते पवन के झोंकों पर ,
कुछ तेरी और कुछ मेरी ।
कुछ अधूरी कुछ पूरी ,
भीनी ओस की बूँदों सी ।
अनकही रूखी आवाज ,
किसी शाख के पत्तों पर ,
दुबक कर सो जाती हैं ।