"क्यूँ मैं नारों में बंट जाती हूँ "
"क्यूँ मैं नारों में बंट जाती हूँ "


अम्बर देख मुझे हँसता हैं,
सवाल बस यही कराता है।
किसकी है तू भारत माता,
कौन तुझे अपना कहता है।
सुन कर सोच में पड़ जाती हूँ,
क्यूँ मैं नारों में बंट जाती हूँ।
कोई धर्म को बेहतर बताए,
कोई उसकी खामियां ढूँढे।
कहीं दंगों में शोले भड़के,
कहीं अपने अपनों से लड़ते।
मैंने सबको अपना समझा,
फिर आतंकवाद क्यूँ बढ़ता है।
हर कहीं हिस्सों में कट जाती हूँ,
क्यूँ मैं नारों में बंट जाती हूँ।
गर्व है मुझे जांबाज बेटों पर,
रक्षा में मेरी जब डट जाते हैं।
आँसू इनके भी बह जाते हैं,
अपने ही जब अपनों से कट जाते हैं।