जब भी
जब भी
जब भी सकरात्मकता
सक्रिय हो
जीवन का मार्गदर्शन करती है
उपलब्धियों के अंबार
नेपथ्य में चले जाते हैं
स्थापित मापदंड पिघलने लगते हैं
विचारों को नये शब्द मिलते हैं
शब्दों का भावनात्मक संवेग
ठिठक जाता है
शब्द अपने अर्थ खुद बताने लगते हैं
लगता है आदमी बोल रहा है।
यकीनन सकरात्मकता
जीवन को नयी ऊर्जा दे जाती है
नयी मंजिले दृष्टिगोचर होने लगती हैं
लगता है कामनायें
रूपान्तरित हो रही हैं मंजिल में
प्रार्थनाएँ स्वीकृति होकर
विजय का स्वरूप धारण करने लगती है
आजकल तो यही सब हो रहा है
कितना विश्वास है होनी में
जैसे प्रकृति निगल रही है
नकारात्मकता का कोलाहल
और मनुष्य को खुद से
जोड़ रही है।
