धिक्कारेगा तुम्हें ये कड़वा सच..
धिक्कारेगा तुम्हें ये कड़वा सच..
धिक्कारेगा तुम्हें ये कड़वा सच
जिसे कहने से तुम डरते हो,
स्वार्थ में अंधे होकर तुम
बुराइयों की पैरोकार करते हो,
तुम स्वार्थी हो मतलबी हो
तुम बस अपनी सोचते हो।
सत्य सामने खड़ा है फिर भी
तुम असत्य के साथ खड़े होते हो,
झूठ मक्कारी का लिबास ओढ़े
तुम हरदम दगाबाजी करते हो,
धिक्कारेगा तुम्हें ये कड़वा सच
जिसे कहने से तुम डरते हो।
अधर्म का साथ देते हो
असंख्य महापाप करते हो,
सब जानकर भी सत्य से तुम
फिर क्यों नज़रे फेर लेते हो,
धिक्कारेगा तुम्हें ये कड़वा सच
जिसे कहने से तुम डरते हो।
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मौन हो जाते हो तुम
गलत को देख आंख मूंद लेते हो,
न्याय का साथ छोड़कर तुम
अधर्मियों की भीड़ में दिखते हो,
धिक्कारेगा तुम्हें ये कड़वा सच
जिसे बोलने से तुम डरते हो ।
परेशानियों में दूसरों को देख
तुम खूब मजे लेते हो,
हवाओं के रुख से डरकर तुम
अक्सर राह अपनी बदल लेते हो,
धिक्कारेगा तुम्हें ये कड़वा सच
जिसे बोलने से तुम डरते हो।
सवालों से दूसरों के बचते हो
नाकामियों को खुद की छिपाते हो,
लफ्फाजियों के आवरण में बैठ तुम
हरदम खुद को बचाते हो,
धिक्कारेगा तुम्हें ये कड़वा सच
जिसे बोलने से तुम डरते हो।