धधक रही है धरती अपनी
धधक रही है धरती अपनी
धधक रही है धरती अपनी, मचा हुआ है हाहाकार।
सुबक-सुबक कर प्रकृति चाहती, हम सबसे कोई उपचार।।
ईंधन के अतिशय प्रयोग से, ग्रीनहाउस का हुआ विकास।
खतरे में ओजोन परत है, खतरे में जीवन की आस।
कई जीव तो नष्ट हो चुके, और कई के हैं आसार
धधक रही है........।।
जहरीली गैसों ने डाला, पर्यावरण संतुलन तोड़।
जीवनदायी हवा मौत की, ओर चली रुख अपना मोड़।
खतरे में है स्वर्ग से सुन्दर, अपना यह प्यारा संसार
धधक रही है.......।।
इंडक्शन, साइकिल, एल ई डी, सौर उपकरण का उपयोग।
ट्रैफिक नियमों को अपनाकर, करें सुरक्षित जीवन भोग।
हरित वाहनों के प्रयोग पर, करना होगा तनिक विचार
धधक रही है....।।
कम से कम ईंधन प्रयोग हो, रखना होगा इसका ध्यान।
तेल बचायें जीवन पायें, जन-जन तक फैलाकर ज्ञान।
आओ मिलकर इस धरती को, दें सबसे सुंदर आकार
धधक रही है........।।