डर लगता है साहब!
डर लगता है साहब!
मिटाने को हवस अपनी
कहीं कोई दरिंदा ना नोच ले
साथ चल रहे भाई बहन को
कहीं कोई कुछ और न सोच ले
और सह कर गमों को
कहीं कोई अपने आँसू न पोंछ ले
डर लगता है साहब !
रिश्वत के बिना
कहीं कोई मेरी फाईल न रोक दे
पहना गले में फूलों का हार
कहीं कोई गला न घोट दे
खिलने से पहले ही कली की
कहीं कोई दबा न कोख दे
डर लगता है साहब !
कर वादा साथ निभाने का
कहीं कोई हाथ मझधार न छोड़ दे
दिखा सपने जन्नत के
कहीं कोई उम्मीद न तोड़ दे
खुशियों के दिखा के ख्वाब
कहीं कोई नाता गमों से न जोड़ दे
डर लगता है साहब !
