डीयर क्रश
डीयर क्रश
माना मैंने अपने इश्क़ का
इजहार तुझसे किया नहीं,
हां, तुझे खोना नहीं चाहता था
अच्छी दोस्ती की सीमा ने रोक रखा था।
हर सुबह तेरा चेहरा ज़हन में तो आता था
मुस्कुरा दिया करता था आइने के सामने,
दिन चढ़ते चढ़ते तुझे याद करते हुए
ख्वाब बुनना अपने अतरंगी दिमाग में,
शाम ढलते तुझे उगते हुए चांद समझक
र घंटो निहारना अच्छा लगता था
बस उस एक संदेश के इंतजार में
देर रात जगे रहना,
हां वक़्त रहते संभालना पड़ा वरना,
अगर इज़हार कर भी देता तो
निभाना काफी अच्छे से आता है।
आज भी तुम्हे देख मन जरूर अपने इश्क़ का
इज़हार करना चाहता है
पर शायद हम दोस्त ही अच्छे है।

