आज जिंदगी आई थी मिलने
आज जिंदगी आई थी मिलने
संध्या समय आज घर की उस खिड़की पर एक स्त्री खड़ी थी, पहले देख घबरा गया मैं, फिर एक आवाज़ आई “ डरो मत मैं चोटी - सी तुम्हारी जिंदगी हूं”।
कुछ देर बाद हिम्मत कर पास गया मैं,पास देख जिंदगी ने मुझे गले लगाया मानो माहौल ‘कृष्ण सुदामा’ मिलन सा था।
बैठा फिर जिंदगी के पास बात शुरू हुई, जिंदगी मुस्कुरा कर कहने लगी “बड़े अडिग हो दोस्त, इतने ठोकरों पर भी सीधे खड़े कैसे रहे जाते हो, मान गई तुझे दोस्त”,
उड़ती पतंग - सा हाल तेरा, जहां वायु वेग वहां को तेरा रास्ता, फिकर करते हो की नहीं अपनी ?
मुस्कु
राते बोल पड़ा मैं “जिंदगी तुम एक सफर हो मैं बस एक राही हूं, चल देता हूं झोला पहन त्यागी साधु का, फिकर करू किस बात की जिसे ये ना पता कब उसका जनाजा उठा जाएगा”,
बात सुन मेरी जिंदगी इथरा गई, जोश में फिर कह पड़ी “अगर आज १०० मील के रास्ते का १० मील भाग लेगा अंतिम समय में जब ये दौड़ पूरी करनी होगी तो एक संतुष्टि का वेग मुस्कान दे जाएगा”,
सूर्योदय रोज होगा बस तू भागना मत छोड़ना बीच जीवन में किसे पता कल तुम हो कि नहीं,
वो वक़्त संध्या का रात में ढल गया और ढलते सूर्य के संग जिंदगी मिसाल की मशाल जगा चली गई।