क्यों आजाद नहीं है बेटियाँ
क्यों आजाद नहीं है बेटियाँ
यह सदी २१ वीं हो गई पर बेड़ियों में बंधी बेटियाँ ,
अरे खोल दो अपने संकीर्ण विचार बदल कर ये बंद पड़ी अनमोल पेटियाँ।
हाथ में बेटी के कोई फोन नहीं,
अच्छा फोन है तो किसी से बात ना कर सके इसलिए फोन में पर्याप्त शुल्क नहीं।
अगर कभी खुद को निहार से तो करती वो जैसे पाप है,
किसी दिन घर का काम समय से ना कर दे तो कहते हो “देखो कैसा सांप है”।
जैसे १८ की हो जाए तो कोई सामाजिक संपर्क नहीं किसी से,
क्या कहते हो किसी गैर से मिलना पर बात मत करना; अरे २१ वी सदी चल रही है बदल जाओ वक्त के साथ।
आखिर क्यों समझते हो अपनी बेटी को कठपुतली और अपने तरीको से नचाते हो,
अरे किस लिए अपनी ही बेटी से किसी रिश्तेदार के हिसाब से व्यवहार करते हो।
कभी थोड़ी आजाद पंछी की तरह छोड़ो इन्हे ये साक्षात अंबे स्वरूप है,
लड़ जाएगी सत्य के लिए बेटी महालक्ष्मी है तो महाकाली भी है।
आखिर क्यों अपनी ही बेटी आज के समय में आजाद नहीं है।