वह सुबह कभी तो आएगी...
वह सुबह कभी तो आएगी...
हाँ ,वह सुबह कभी ना कभी तो हरियाली वादियों में आएगी,
जब तुमसे तस्वीरों में नहीं हुबहू मुलाकात होगी,
बहुत हो गई चिट्ठीयो से गुफ्तगू अब तो तुम्हारी चश्म आंखों से इकरार होगा।
इंतज़ार है सर्दियों का जो उस सुबह में नूर से मुलाकात होगी,
न जाने की बेबसी है तुझे देखने की शायद खुदा की कलाकारी का नगमा हो तू,
बहुत हो गई चिट्ठीयो से गुफ्तगू कवि हूं यार अब तो कविताओं से इज़हार होगा।
कब वह दिन आएगा जब सुबह का पहला संदेशा मेरे नाम लिखा जाएगा, वह सुबह कभी तो मेरे नाम कुछ ले आएगी,
काली नीली गुलाबों का बाग बांध लिया है मन में तेरे आने पर मकबूल हो जाएगा जमाने में।
तेरा पैरहन तो कुछ यूं वाकिफ है मेरे दिलो दिमाग में, नूर सा छा गया हो,
इकरार करने से डरता हूं, एहतराम जो तुम्हारी करता हूं,
इत्तिफाक की बात होगी उन सर्दियों की सुबह में कभी तो जब शिद्दत से तुम्हारा साथ होगा।