मैं तो चल पड़ा
मैं तो चल पड़ा
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कुछ सीख चला अब नए दौर में,
एक नादान से समझदार बन।
बात बीती लाखो - हजारों,
कुछ सीख अब आगे चला मैं।
रंग देख लिए कई इस सफर में,
ख़्वाबों को साकार कर चल पड़ा मैं।
विद्यालय का सफर पूरा कर अब चल पड़ा मै महाविद्यालय के सफर पर,
संन्यासी का चोला पहनकर मंजिल पूरी करने चल पड़ा मैं।
साथ ना मिला अपनों का हँसते - हँसते ठोकरें खाते चल पड़ा मैं।
रंग देखें कुछ अपनों के और समझदार बन चल पड़ा मैं ।