चुपचाप पर्दा डाल देते हैं
चुपचाप पर्दा डाल देते हैं
देश में कितना विकास
कितनी तरक्की हो गई
दरिंदों के हाथों जल के
फिर एक बिटिया कभी ना
खुलने वाली नींद में सो गई
लगता है लहू पानी हो चुका है
क्यों नहीं उबलता सियासतदारों
का खून
हर बार आँखों में पट्टी बांध लेते हैं
जूं तक नहीं रेंगती कानों में उन
मक्कारों के
सीने में धधकती आग में
उन दरिंदों को डाल देते हैं
कानून तो बने मगर इंसाफ
को हर बार टाल देते हैं
घरवाले उसकी आस में
जिंदगी गुजार देते हैं
कुछ गुनाह तो नजर आते हैं
लेकिन कुछ पर बदनामी के डर से
चुपचाप पर्दा डाल देते हैं
