चश्मे के पीछे से
चश्मे के पीछे से
चश्मे के पीछे से जो तुम मुस्कराती हो,
मेरे मन की महफिल को तुम मुस्कान से रोज सजाती हो !
न जाने कौन सी बात है वो जो तुम मुझसे छुपाती हो ?
गोया की हम जानते ही नहीं कि वो राज़ क्या है ?
जिस राज़ को अपने दिल में चुराती हो।
मेरी मित्रता की तुम अनमोल थाती हो।
मगर मुझे आज तक पता नहीं चला कि न जाने किसकी तुम जीवनसाथी हो !
चश्मे के पीछे से जो तुम मुस्कुराती हो !
क्या गम है वो जो मन- ही- मन सहते जाती हो ?
पर इतना तो तेरे दिल में भी जरूर ख्याल आया होगा कि
जीवन में किसी सच्चे हमसफ़र की जरूरत भी होती है !
जिसका दिल में कहीं दबी हुई एहसास,
हल्की सी तलाश होती तो जरूर होगी तुम्हें भी !
तो अपने दिल की बात हमें भी क्यों नहीं बताती हो ?
आखिर कोई तो दीया जरूर जगमगाता होगा
तेरी लौ से जिसकी प्रज्वलित तुम बाती हो।
चश्मे के पीछे से जो तुम मुस्कुराती हो !
इसी अदा पे तुम सब कुछ हमसे भी छुपाती हो ।
