चलो फिर से मिलाएँ दिल
चलो फिर से मिलाएँ दिल
आसमां से बातें करने लगे
राह की ईंट
जब उसे
अदना और
त्यक्त लगने लगे
हिकारत जब
द्वेष का
चोला पहन
ईंट की
बेबसी लाचारी
और शराफत
तार तार कर
दर ब दर
की पुरजोर हिमाकत
करने लगे तो
ईंट को अपना
वजूद दिखाना
लाजिमी होता है।
बिन नींव
बुर्ज का क्या
अस्तित्व
शिखर पर जीता
एकाकी जीवन
न अपने
न अपनों का साथ
किससे कहेगा
मन की बात ?
सहेगा एकाकीपन का दंश
विषाद का त्राण
अवसाद का हलाहल
भौतिकता में बौना होता आदमी
काश
ये बढ़ती दूरियाँ
विस्तारित होते फासले
हमें खोखला कर गए
बो गये विषबेल
कुढन भरी ज़िंदगी की
बदल पातीं परिस्थितियाँ
ज़िंदगी के उस पार
झांकने की
आओ
चलो फिर से दिल मिलाएँ
खिलखिलाएँ
झूमें नाचें गाएँ
जी लें फिर
वही ज़िंदगी
साथ-साथ
एक साथ...
क्या आप भी
चलेंगे संग-संग...?