चिड़ियाँ तुम्हारे आँगन की
चिड़ियाँ तुम्हारे आँगन की
चिड़ियाँ तुम्हारे आँगन की
आती जाती मस्ताती हैं।
कभी रुककर पल भर,
अपने आप को पाती हैं।
नम आंखों में मुस्कान लिये,
पीहर की देहरी लाँघ आतीं,
चन्द लम्हे जीकर हम सब से,
झोली भर खुशियाँ माँग लातीं।
बाबुल का आँगन रहे महकता,
दुआओं में हरदम गाती हैं।
छत पर तुलसी का बिरवा,
छुपकर गले लगाती हैं।
मेरा बंजारा मन भी देखो,
दौड़ा भागा फिरता है।
इन गलियों और बागियों में,
बचपन को ढूंढा फिरता है।
पापा का दीवान देख कर ,
बीते दिन याद आते हैं।
बिना वजह जब रूठे तब,
मम्मी का मनाना याद आता है।
इन छतों की सरहद पर,
कुछ धूप पतंगें उड़तीं हैं।
कुछ कच्चे सपनों की गलियां,
मेरे अतीत में मुड़ती हैं।
हाँ, पापा औऱ मम्मी मेरी,
तुम ही तो मुझे जिलाती हो।
मन से मैं बस "वही"रही,
रह -रहकर याद दिलाती हो।
मैं मान का जेवर पहन चली,
प्रिय का आँगन मुस्काता है।
ये कुछ दिन का आना जाना,
रिश्तों की आँच निभाता है।
पापा बोले चिंता मत कर ,
हम हरदम हैं साथ खड़े।
पापा नही रहे तो क्या,
हम हैं मम्मी के साथ खड़े।
सच मे ये मायका तो,
जन्नत जैसा लगता है।
हर बेटी के मन मे ये,
सांसो जैसा पलता है।
चिड़िया तुम्हारे आँगन की,
फिर दाने में लग जाएंगी।
जब जब बुलाओगे पीहर,
तो दौड़ी दौड़ी आएंगी।