छूप छूपकर
छूप छूपकर
छूप छूपकर खिड़की से न देखा करो,
कभी तो मुझे तुम चेहरा दिखाया करो,
मेरी अखियों से तुम अखियां मिलाकर,
मुझे अंखियों के झरोखें में बिठाया करो।
मुझे मिलने का वादा तुम निभाया करो,
मुझे तड़पाकर इंतजार न कराया करो,
सावन की मस्त घटा में मेरे साथ बैठकर,
मुझे तुम्हारे हूश्न में मदहोंश बनाया करो।
ईतनी पथ्थर दिल की तुम न बना करो,
कभी तो मेरे दिल से दिल मिलाया करो,
दिल की धड़कन का तुम ताल मिलाकर,
मरे इश्क का नग्मा भी गुनगुनाया करो।
मुझे ईतनी भी नफ़रत तुम न किया करो,
मेरे इश्क का इस्तकबाल तुम किया करो,
मेरी "मुरली" की धुन में तुम मग्न बनकर,
मेरे इश्क की गहराई महसूस किया करो।
रचना:-धनज़ीभाई गढीया"मुरली" (ज़ुनागढ)

