मै कौन हूंँ?
मै कौन हूंँ?
मै अकेला कभी रह सकता नहीं,
मै परिवार की अहमियत समझता हू़ँ।
मै नफरत से कभी भी ड़रता नहीं,
मै नफरत को दूर करनेवाला मसीहां हूंँ।
मै जुल्म-सितम कभी करता नहीं,
मै मानवता की जलती हुई मिशाल हूंँ।
मै भयानक आग से कभी ड़रता नहीं,
मै ठंडे बर्फो के पहाड के बीच रहता हूंँ।
मै पतझड़ को कभी सह सकता नहीं,
मै पतझड़ में भी बसंत को लहराता हूंँ।
मै प्यार में कभी बेवफाई करता नहीं,
मै प्यार का बरसता हुआ मेघ मल्हार हूंँ।
मै शोक का आलम पसंद करता नहीं,
मै "मुरली" धुन से परमानंद लहराता हूंँ।
रचना:-धनज़ीभाई गढीया"मुरली" (ज़ुनागढ-गुजरात)
