क्यूंँ न कहूंँ कि
क्यूंँ न कहूंँ कि
तुम मेरे नयन हो,
तुम नयन दृष्टि की हो,
मै तुम को क्यूँ न कहुँ कि,
तुम ही मेरी दुनिया हो।
तुम मेरा दिल हो,
तुम दिल की धड़कन हो,
मै तुम को क्यूँ न कहुँ कि,
तुम मेरे दिल की रानी हो।
तुम मेरी आराधना हो,
तुम मेरे प्यार की ज्योत हो,
मै तुम को क्यूँ न कहुंँ कि,
तुम मेरे प्यार की देवी हो।
तुम मेरे प्यार का राग हो,
तुम मेरे प्यार का आलाप हो,
मै तुम को क्यूंँ न कहुंँ कि,
तुम "मुरली" की जान हो।
रचना:-धनज़ीभाई गढीया"मुरली" (ज़ुनागढ-गुजरात)

