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Jaiprakash Agrawal

Tragedy

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Jaiprakash Agrawal

Tragedy

छपाक

छपाक

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चेहरे पर हमने धूप भी पड़ने न दिया

हीरे की तरह इसे सहेज कर रक्खा

हीरे की चमक से किसी की आंखें चौंधिया गयीं

सुबह की सैर ने मेरा चेहरा बदल दिया


आंखों मे बसे थे हसीन सपने

जिन्हें तेजाब ने पिघला दिया

चांद पर लगा ग्रहण

मोरनी सी दो आंखें और संगमरमर सा चेहरा


एक छपाक से नहीं रहे

एक चेहरे पर दूसरा चेहरा लग गया

और चेहरा एक नुमाइश बन गया

हमने भी यह कड़वा सच जाना

कि चांद पर ग्रहण कैसे लगता है।


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