छल कपट
छल कपट


छल,.. कपट बिन कुछ ना होता
आज के इस संसार में ,
सीधा साधा भूखा रहता
पैसे पैसे को रोता रहता ,
कपटी का घर भरा ही रहता
उसपे कोई कमी न रहता
करते हैं लोग उसकी तारीफ
धन कुबेर जो बन कर बैठा ,
छली ही आज बली बना है
अपनो को ही वह छल रहा है ,
जहां देखो वह करता कपट
छल से वह सब लेता झपट ,
उसके आगे किसी की न चलती
ईश्वर को भी है घुस देता
राजा से रंक तक किसी को भी
ना उसने छोड़ा है , छली ही है बली।