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चेहरा

चेहरा

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यूँ तो ईश्वर की
हर रचना को
शब्दों के सहारे 
जोड़कर या तोड़कर
नज़्म कर देता हूँ 
पर जब बात तुम्हारी आती है
तो जाने क्यों
मन के भाव 
शब्दों के अभाव में
कही दफ़न से हो जाते हैं। 
कलम भी बस
टकटकी लगाए
कोरे कागज को निहारता रह जाता है
और अंत में,
अंत में बस
उस कोरे कागज पर
एक बिंदु डालकर
दाब देता हूँ
किताबों के पन्नो के बीच 
शायद सही ही करता हूँ।
तुम भी
जब अपने
कोरे चेहरे पर
बस बिंदी
लगाती हो
तो तुम्हारे चेहरे को पढ़ने 
में जो आनन्द की अनुभूति होती है
भला
वो भी शब्दों में
कहाँ बयान 
हो पाती है।


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