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Rishi Raj Singh

Tragedy

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Rishi Raj Singh

Tragedy

गोलियों की आवाज़

गोलियों की आवाज़

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इजराइल, गाज़ा, पैलेस्टाइन के लोग

कविताएं नहीं पढ़ते

न ही वो जानते हैं

कविता लिखने की कला

जो कुछ एक आवाज़ उन्होंने 

पिछले एक दशक में सुनी है

वो गोलियों की आवाज़ है,

बम और ग्रेनेड के धमाके हैं।


हर युद्ध के बाद बिखरी लाशों के संग

बिखरी होती हैं 

बुलेट और ग्रेनेड की खाली खोलियाँ

उस वक़्त जब बाकी बचे मर्द

कर रहे होते हैं अगले युद्ध की तैयारी

बची औरतें और बच्चे

इन खोलियों को इकट्ठा कर 

इनमें भरते हैं मिट्टी और बोते हैं फूल।


उनको उम्मीद है

एक रोज़

बम और बारूद के इन अवशेषों से

होकर उगेगा एक सफेद गुलाब

और उस रोज़ के बाद से

फिर नहीं उठाएगा कोई बंदूक

न ही आएगी बम के धमाकों की आवाज़,

लोग बैठे होंगे थाम कर हाथों में कलम,

मशगूल होकर लिखते हुए एक कविता ।।


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