चाँदनी रात
चाँदनी रात
चाँद ने कहा चाँदनी से
यूँ रूठा ना कर मुझसे
मेरी जान निकल जाती है
चाँदनी ने भरी आँखों से चाँद को कहा
तारों के साथ मस्तियाँ करते
तुम्हें मेरी याद ही कहाँ आती है ?
चाँद ने हँसते हुए कहा
अरे पगली! वो तो मैं तुझे जलाता हूँ
थोडा तुझे सता आपस की
प्रीत बढ़ाता हूँ।
चाँदनी इतराते हुए बोली, वाह प्रिये !
ये नुस्खे तो बड़े सयाने हैं
मुझे भी प्रीत बढ़ाने के लिए
इनमे से कुछ आजमाने हैं।
तुम तारों के साथ खेल
मुझे सताते रहो
मैं बादलों की गोद मैं बैठ
उसकी ओट में छुप
तुम्हें तरसाती रहूंगी
फिर रिश्ते हमारे
दिन पे दिन संवरते जाएंगे
प्रीत के रंग गाढ़े अबीर से निखरते जाएंगे।
(चाँद उस दिन से हँसना भूल गुमसुम हो गया)