चाहे भरोसा न करें
चाहे भरोसा न करें
नैतिकता की बातें हजार
मिले बचपन से पावन संस्कार।
भरोसे को शब्द नहीं साकार माना
भेद न इसमें अपना पराया जाना।
जो भी प्यार से मिला
उसी के हो लेने वाला सिद्धांत था।
देर से समझ आया ही केवल बखान था
हकीकत इससे कोसों दूर है
यह आजकल मूर्खता रूपी फितूर है।
स्वीकार भी करना चाहते हैं जरूर
क्या करें आदत से है मजबूर।
बुरी आदत भरोसा कर लेने की है
पछताना पड़ता है तभी आदत धोखा देती है।