बुढ़ापा
बुढ़ापा


आज वो
बूढ़े हो गये
और कुछ ऊँचा
सुनने लगे हैं।
बड़बोले से बनकर
स्वयं से ही
बातें करने लगे हैं।
आँखें अंदर
धस गईं
और हाथ-पैर
काँपने लगे हैं।
अपने ही घर के कोने में
एक टूटी हुई चारपाई
और अपनों से ही
पराये होने लगे हैं।
ओढ़कर चादर
मैली-सी
बात-बात को
सुनने लगे हैं।
अपनों ने
जब साथ छोड़ा
मन ही मन
रोने लगे हैं।
आज वक़्त ऐसा आया
खांस-खांस कर
एक रोटी के लिये
पुकारने लगे हैं।
बुढ़ापा किसी को
ऐसा न आये
माँ-बाप औलाद के सामने
झुकने लगे हैं।
बनकर तमाशा
जिंदगी न रह जाये
ऐसी दुआ मन ही मन
करने लगे हैं।