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संजय असवाल "नूतन"

Abstract Tragedy Others

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संजय असवाल "नूतन"

Abstract Tragedy Others

प्रेम का बिछोह..!

प्रेम का बिछोह..!

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तारों संग बातें करती रातें

अब खामोशी ओढ़ने लगती है,

जिस प्रेम ने रोशन किया था मन मेरा

वो याद बन बिखरने लगती है।


तेरे बिना ये जीवन अधूरा

हर सांस बोझिल सी लगती है,

तू जहां है वहीं धड़कन मेरी,

ये दूरी दिल को छलने लगती है।


नदी की तरह बहता था प्रेम मेरा

अब सूखी धार सा दिखने लगती है,

तेरी यादें लहरें बनकर मेरे

हर पल को झकझोरने लगती है।


वो प्रेमपाती जो आया था कभी

अब खाली लिफाफा सा दिखने लगती है

हर अक्षर में अब भी ढूंढूं मैं तुझे

पर तेरी बातों का सिरा गुमने लगती है।


चांदनी भी अब फीकी लगती है 

किरणें सूरज की जलाने लगती है,

तेरे प्रेम का बिछोह ही ऐसा

हर खुशी में तन्हाई छलकने लगती है।


फिर भी मन में एक आस है बाकी 

तेरे लौटने की एक प्यास है बाकी,

इस बिछोह का अंत हो शायद

प्रेम की डोर में मेरे विश्वास है बाकी।


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