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Lakshay Kansal

Tragedy Others

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Lakshay Kansal

Tragedy Others

"दर्द ए ज़ख्म भी अच्छे हैं"

"दर्द ए ज़ख्म भी अच्छे हैं"

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"कुछ कहते नहीं, 

मगर सब बयान करते हैं, 

लिखते हुए भी, 

आज कल अंजान लगते हैं, 

अरे सच कहा जनाब, 

दर्द ए ज़ख्म, 

बड़े अच्छे लगते हैं... 


एक सियाही से दिखते हैं , 

तो कुछ जाम बन जाते हैं, 

बेजुबां हैं जानते हैं, 

मगर ठोकर भी ये, 

दर्द ए ज़ख्म की, 

बड़े अच्छे लगते हैं... 


ना कहे इश्क सी, 

ना कहे इसको जिम्मेदारी, 

ना कहू अपना सा इसे, 

ना कहू बेगाना, 

लफ्ज नहीं इसके गालिब, 

लेकिन दिल को फिर भी लगते हैं, लोग कहते हैं बुरा इसे, 

लेकिन गालिब बुरा नहीं माने, 

दर्द ए ज़ख्म से, 

अच्छे तो यहां वक्त भी नहीं है...


लुत्फ उठाओ जिंदगी का,

जिम्मेदारियों में क्यों दबे हो, 

ये चोट तुम्हारी है, 

दुनिया को इससे क्या लेना है, 

खुश नसीब हो तुम, 

जो ये घाव मिला है, 

मत सोचो तुम इतना क्यूकी, 

दर्द ए ज़ख्म भी, 

बड़े अच्छे लगते हैं... 


ऐ आंसू काहे तू निकलता है, 

ये भी हिस्सा है जिंदगी का, 

आखिर क्यू तो रोता है, 

उसने छोड़ा तो क्या, 

जीना छोड़ देंगे हुजूर, 

ये दर्द ए ज़ख्म जिंदगी के, 

बड़े अच्छे हैं... 


गुस्ताखी हर माफ हो , 

हर शाम मोहब्बत सी हो, 

लोग तो यूं ही तड़पते हैं, 

अरे दर्द ए जिंदगी का भी, 

बस एक जिंदगी उसका नाम हो... 



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