बुढ़ापे की सनक
बुढ़ापे की सनक
जीवन की सांध्य -बेला बुढ़ापा नही कहलाता,
कोई इसे माने जीवन का सबसे दुखद काल,
पर यकीन माने ये वो समय है जो बार बार नहीं आता,
बचपन की यादें फिर ताज़ा हो जाती हैं,
मन फिर उम्र का साथ छोड़ बच्चा ही बन जाता है,
सारे जीवन का निचोड़ हाथ उनके ही आता है,
अनुभव का खजाना फिर झोली उनकी भर जाता है,
बुढापे की सनक नही यारों, खुशी की ललक है,
अधूरी कामनाओं की कसक है,
ज़िन्दगी में कश्ती खड़ी किनारे पर,
और मन मझधार में,
सब कुछ पा कर भी कुछ न पाने का गम,
यही उम्र का वो दौर कहलाता है,
जब इंसान सब जीत कर भी अपनी उम्र से हार जाता है।