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बताएं कुछ इल्म

बताएं कुछ इल्म

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बताएं कुछ इल्म

 

मुझे रुला देती है

पल भर भुला देती है

वो कभी थे भी मेरे जीवन में!

कभी पाँव भी पड़े थे मेरे आंगन में!

 

शायद ही में सब कुछ भुला पाती

उनकी याद बारंबार सताती

शायद ही कोई ऐसा पल हो, जब मैंने याद ना किया हो

यह विदाई का घूँट जैसे मुझे हर बार पीना पड़ता हो।

 

बहुत रुआब से हम चलते थे

ख्वाब में भी हम ऐसे ही रहते थे

पता नहीं था सपना जल्दी ही टूट जाएगा

मेरी हस्ती को मानो मिटाकर जाएगा।

 

जीवन में हर चीज़ का आना स्वाभाविक है

हम सब लोग तार्किक और भाविक हैं

थोड़ी ही देर में रुआंसे हो जाते हैं

और फफक फफक कर रो पड़ते हैं।

 

दिखाते कुछ नहीं पर मन पर भारी पड़ता है

आँसुओं को बार बार पोंछना पड़ता है

अपने आप में संगीन अपराधी महसूस करते हैं

कुछ ना कुछ भूलने की कोशिश करते हैं।

 

बेचैनी अंदर से खाये जा रही है

दिल को भीतर से रुलाये जा रही है

ना हो किसी के संग ऐसी विदाई का जुल्म

 

किसी के पास हो बताएं कुछ इल्म।

 

 


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