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SARVESH KUMAR MARUT

Abstract Inspirational

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SARVESH KUMAR MARUT

Abstract Inspirational

बसन्त का मौसम जब आता है

बसन्त का मौसम जब आता है

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बसन्त का मौसम जब आता है,

साथ नई ख़ुशियाँ लाता है।

देख इसे तब मानव ही क्या?

जड़-चेतन भी लहलहाता है।

हुए थे पतझड़ से घायल ये,

नई जान सी लाता है।

खेत खलिहान हरित हो चले,

सारे जग को महकाता है।

फूट चुकीं अब कलियाँ, दल पात्र,

तब धूप में जग चिलकाता है।

बसन्त का मौसम जब आता है,

साथ नई ख़ुशियाँ लाता है।


मस्त पवन भी धीरे-धीरे,

तब सारे जग को सहलाता है।

उड़ी-उड़ी लो मधु मधुरस लेकर,

और तितली के मन को हर्षाता है।

सुगन्ध महकती धीमे-धीमे,

यह मन को हमारे मचलाता है।

शाखा तो अब बाल्य हो चलीं,

और पत्ता-पत्ते से तब टकराता है।

यौवनित हो चले झाड़ पात वन,

श्रृंगरित होकर शर्माता है।

अब आ गये देखो प्रेम पुजारी,

आँचल तब उनका रह न पाता है।

बसन्त का मौसम जब आता है,

साथ नई ख़ुशियाँ लाता है।


दूषित वसन तब टूट चले थे,

बस ठूँठ बने लजियाता है।

फटे चिरे क्षीण थे ऐसे,

वह अम्बर या गेह पथ पर गिर जाता है।

कोई आये या कोई गुज़रे,

तब कोई दया दृष्टि या काट गिराता है।

पर महिमा है न्यारी उसकी,

देख परिस्थिति, बसन्त भेज दिया जाता है,

मानव क्यों व्याकुल सा फ़िरता?,

आग लगी-लगी बस मन समझाता है।

सखी घूमती चली बावली,

प्रेम प्रताड़ित यह आग और बढ़ाता है।

बसन्त का मौसम जब आता है,

साथ नई ख़ुशियाँ लाता है।।                                                               


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