बसंत का आभास
बसंत का आभास
आभास
होता है
पदचाप का
सुगंध का
एहसास
जैसे
फिर यहाँ
होने लगा !
मंद-मंद
मुस्कान
फैली सारी दिशाओं में
ऋतु बसंत
फिर
नव कली ले आ गई
फूल सारे
खिल गये
प्राण का सज्ञान
संचित
हो गया !
दुख के बदल छट गए
नव पंखुरियां
खिलने लगी !
कोयलों ने
कुहू-कुहू से
गीत गायन
करने लगे
मंत्र-मुग्ध
सारा जहाँ
होने लगा !
आभास ने
फिर पंख
पसारे
स्वागत किया !
