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Lakshman Jha

Drama

2  

Lakshman Jha

Drama

बसंत का आभास

बसंत का आभास

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आभास

होता है

पदचाप का

सुगंध का

एहसास

जैसे

फिर यहाँ

होने लगा !


मंद-मंद

मुस्कान

फैली सारी दिशाओं में

ऋतु बसंत

फिर

नव कली ले आ गई

फूल सारे

खिल गये

प्राण का सज्ञान

संचित

हो गया !


दुख के बदल छट गए

नव पंखुरियां

खिलने लगी !


कोयलों ने

कुहू-कुहू से

गीत गायन

करने लगे

मंत्र-मुग्ध

सारा जहाँ

होने लगा !


आभास ने

फिर पंख

पसारे

स्वागत किया !


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