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Shilpa Mahto

Drama

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Shilpa Mahto

Drama

बस इंसान बन जाना चाहती हूँ

बस इंसान बन जाना चाहती हूँ

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दीया बनने की ख्वाहिश नहीं,

बस खुद को जला कर,

उजियारा भर देना चाहती हूँ ।


सितारा बनने की ख्वाहिश नहीं,

बस अपनी टिमटिमाती रोशनी से,

उस आसमान को सजा देना चाहती हूँ ।


पेड़ बनने की ख्वाहिश नहीं,

बस झुलसती धूप सहकर भी,

ठंडी छाँव बिखेर देना चाहती हूँ ।


नदी बनने की ख्वाहिश नहीं,

बस खुद बह कर भी,

सबको तृप्त कर देना चाहती हूँ ।


पक्षी बनने की ख्वाहिश नहीं,

बस अपने पंखों से,

उन बादलों को छू लेना चाहती हूँ ।


अभिनय करने की ख्वाहिश नहीं,

बस इन उतार-चढ़ाव के संग,

अपनी भूमिका निभा लेना चाहती हूँ ।


शिल्पकार बनने की ख्वाहिश नहीं,

बस इन औजारों से,

खुद को तराश लेना चाहती हूँ ।


तस्वीर बनाने की ख्वाहिश नहीं,

बस इन आड़ी-तिरछी रेखाओं से,

खुद को उकेर लेना चाहती हूँ ।


कहानी लिखने की ख्वाहिश नहीं,

बस कोरे कागजों पर,

अपनी ज़िन्दगी लिखना चाहती हूँ ।


कविता लिखने की ख्वाहिश नहीं,

बस इसके लय में अपने जज़्बातों को,

समेट लेना चाहती हूँ ।


महान बनने की ख्वाहिश नहीं,

बस इंसानियत को समेटे,

इंसान बन जाना चाहती हूँ ।


ज़िन्दगी जीने की ख्वाहिश भी नहीं,

बस सुलगते जज़्बातों की आंच में,

तजुर्बों को ज़रा और पका लेना चाहती हूँ ।


बस इंसानियत को समेटे,

इंसान बन जाना चाहती हूँ ।


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